CCSU SCRIET Suicide News: Meerut के CCSU (चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय ) के SCRIET (छोटू राम इंजीनियरिंग काॅलेज) के बीटेक थर्ड ईयर के छात्र ने प्रशांत पांडेय 19 Sep को छात्रावास में फांसी लगाकर हत्या कर ली थी । छात्रों ने पुलिस को जानकारी दी तब पुलिस घटना स्थल पर पहुची और घटना की जानकारी ली। पुलिस ने शव को नीचे उतरवाकर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया। इस आत्महत्या की घटना के बाद छात्रों ने हॉस्टल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए विश्वविद्यालय के मुख्य गेट पर तालाबंदी कर दी। ये घटना यूनिवर्सिटी के पंडित दीनदयाल उपाध्याय छात्रावास के रूम नंबर 99 में हुआ। मौत की जानकारी मिलते ही कैंपस में छात्रों ने हंगामा कर दिया।
प्रशांत दो बहनों का इकलौता भाई था और वाराणसी का निवासी था । पिता नागेश पांडे का परिवार एक साधारण परिवार है जो खेती से अपने घर का खर्चा चलाते है। ऐसे में इकलौते पुत्र का इस दुनिया से चले जाने का गम एक पिता को पूरी जिंदगी घुट घुट कर जीने पर मजबूर करता रहेगा। अमर उजाला की एक ख़बर के अनुसार इस घटना के पीछे दो कारण बताया जा रहा है। पहला प्रशांत की चार विषयों में बैक होने की वजह से वो तनाव में था और शायद इस कारण से उसने यह कदम उठाया होगा। वही दूसरा कारण वार्डन और प्रबंधन पर लापरवाही। पुलिस इस मामले की जांच कर रही है इसीलिए जब तक इस घटना का कारण पता नही चल जाता तब तक इस घटना का कारण बता पाना मुश्किल है। लेकिन विश्व विद्यालय के अन्दर ये एक घटना नहीं गिनी चाहिए क्योकि NAAC में सफलता का जश्न अगर ये विश्वविद्यालय मनाता है तो इस घटना की जिम्मेदारी भी विश्वविद्यालय को लेनी होगी ? बच्चे अगर समय पर फीस देते है तो उनकी सुरक्षा और मानसिक संतुलन बनाए रखने की जिम्मेदारी भी विश्व विद्यालय की होनी चाहिए या नहीं ?
घटना होने से पहले छात्र प्रशांत पाण्डेय के हालात हॉस्टल प्रबंधन तक क्यों नहीं पहुचे ?
अगर पंडित दीनदयाल उपाध्याय छात्रावास के वार्डन का व्यवहार छात्रों से मिलनसार होता तो मौत से पहले छात्र Prashant Pandey अपनी परेशानी को अपने वार्डन से कहता . लेकिन यहाँ साफ़ जाहिर होता है कि वार्डन और चीफ वार्डन का व्यवहार बच्चो से मिलनसार नहीं है या यु कहिये कि स्टूडेंट्स और कालेज प्रशासन के बिच की दुरी बहुत ज्यादा है इसीलिए प्रशांत पाण्डेय अपनी व्यथा को लेकर किसी से कुछ कह नहीं पाया और जिंदगी से हार मान बैठा . लेकिन एक सवाल ये भी है कि इतनी बड़ी घटना हो जाने के बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय छात्रावास के वार्डन और चीफ वार्डन को पद से मुक्त नही किया ?
आत्महत्या के बारे में क्या कहते है आकड़े ?
केंद्र सरकार ने 15 मार्च 2023 को संसद के उच्च सदन में बताया कि साल 2018 से 2022 के बीच आईआईटी, एनआईटी और आईआईएम जैसे देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में 55 स्टूडेंट्स ने आत्महत्या कर ली. शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष सरकार ने बताया कि 2018 में 11, साल 2019 में 16, वर्ष 2020 में पांच, 2021 में 16 और 2023 में अब तक 6 स्टूडेंट्स आत्महत्या कर चुके हैं. आखिर क्या कारण है कि आईआईटी, आईआईएम और एनआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिले के बाद भी स्टूडेंट्स आत्महत्या कर लेते हैं?
आइये जानते है वो मुख्य कारण जो चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में हुए इस घटना का ज़िम्मेदार हो सकता है ?
मेलजोल में कमी:
CCSU SCRIET Suicide: CCSU (चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय) के SCRIET (छोटू राम इंजीनियरिंग काॅलेज) के बीटेक विभाग में ज्यादातर बच्चे मेरठ के बाहर से है और सामान्य परिवार से है। सामान्य परिवार से आने वाले बच्चों में सबसे ज्यादा तादात उन बच्चो की होती है जो पहली बार अपने माँ-पिता और परिवार से दूर आते है। ऐसे में हॉस्टल के बच्चों के बीच मेलजोल बनवाए रखना विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी है। विश्वविद्यालय को चाहिए कि तरह तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम के द्वारा बच्चों को दुसरे को जानने का अवसर दे। लेकिन इस विश्वविद्यालय में सबसे ज्यादा कार्यक्रम विश्वविद्यालय के बाहर के लोग आकर करते है।

इस विश्वविद्यालय में आपसी मेलजोल की बात छोड़िये, हॉस्टल के नोटिस बोर्ड पर पिछले कुछ महीनों से एक नोटिस लगाया गया है जिसमे कहा गया है कि किसी भी कारण की वजह से बच्चे एक जगह ग्रुप में इक्कठे नहीं हो सकते है . ऐसा लगता है कि ये नोटिस जारी करने से पहले विश्वविद्यालय और हास्टल प्रशासन ने ये सोचा होगा कि ये स्टूडेंट नहीं अपराधी है . ऐसे में क्या कोई ऐसे माहौल में मानसिक तनाव से दूर हो सकता है ? इस हास्टल के बच्चों का कहना है कि ये आदेश नए चीफ वार्डन बने दिनेश कुमार जी ने पद सँभालते ही लागु किया .
इस हास्टल के बच्चो का कहना है प्रोफ दिनेश जी के पहले चीफ वार्डन रहे प्रोफ रूप नारायण जी हमेशा रेगुलर अन्तराल पर बच्चों से मिलकर उनका हाल चाल और बच्चो की समस्याओ सुनते थे . इससे भी बड़ी बात ये है कि नए चीफ वार्डन प्रोफ दिनेश विश्वविद्यालय में ही नहीं रहते है इसीलिए समय पर वो बच्चों की सम्स्याओ को भी नही सुन पाते है . जबकि पूर्व चीफ वार्डन प्रोफ रूप नारायण जी विश्वविद्यालय प्रांगण में ही रहते है जिसकी वजह से बच्चों के एक फ़ोन पर कुछ ही मिनट में बच्चों के बिच होते थे . प्रोफ रूप नारायण जी को किस वजह से इस्तीफा देना पड़ा इसकी जानकारी हमारे पास नहीं है .
यहाँ की सुविधाए की फी भले ही बच्चों की ज़ेब से जाता हो लेकिन इस फ़ायदा नेतागिरी और सरकारी कार्यक्रमों में सबसे ज्यादा किया जाता है।
देश के सभी विश्वविद्यालय में बच्चो की फीस के रूप के सांस्कृतिक कार्यक्रम, मेडिकल सुविधा , ट्रेन टिकट सुविधा सहित कई तरह से फी लिया जाता है लेकिन एक बार भी एडमिशन के बाद क्लासरूम में ऐसा कोई सेमिनार नहीं किया जाता जिसमे इन सभी सुविधाओ को बच्चों के सामने विस्सतार से रखा जाता है। जिसके कारण कई बच्चे इन सुविधाओं से वंचित रह जाते है।
एक टेक्निकल कालेज में सीनियर और जूनियर के रिश्ते के द्वारा जो सिख बच्चो को मिलती है और वो ही उनके पुरे जीवन भर काम आता है। ऐसे में ये विश्वविद्यालय न तो ऐसे किसी कार्यक्रम को करा पाने में सफ़ल हो पाया है और न ही कभी भविष्य की योजना अभी तक सामने आई है। जब हम IIT, IIM जैसे शिक्षण संस्थानों को देखेंगे या फिर प्राइवेट सेक्टर के भी शिक्षण संस्थानों को देखेंगे तो हमे भी यही देखने को मिलता है कि बच्चो को मानसिक तनाव से निकालने के लिए ऐसे कार्यक्रम का होना बहुत जरूरी है। माध्यम वर्ग से आने वाले परिवार के बच्चो के लिए एक कॉलेज ही वो जगह होती है जहा इस दौड़ भाग की ज़िंदगी सिखने का अवसर मिलता है।
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क्या इस आत्महत्या का श्रेय विश्वविद्यालय को NAAC में सर्वाधिक अंक मिलना है ?
NAAC में सर्वाधिक अंक पाकर भले ही ये विश्वविद्यालय तरह तरह के वादे किया हो लेकिन इसका पहला परिणाम हमे एक बच्चे की आत्महत्या के रूप में देखने को मिला है। बच्चों के भविष्य को संभालने के लिए NAAC में सर्वोत्तम श्रेणी मिलने के बाद भी बीटेक के विद्यार्थियों के लिए किसी तरह प्लेसमेंट की व्यवस्था नहीं की गयी। यहाँ तक की इस विश्वविद्यालय में जितनी भी कंपनी प्लेसमेंट के लिए आती है किसी का भी पिछला रिकॉर्ड चेक नहीं किया जाता शायद तभी पिछले साल हुए प्लेसमेंट में दिल्ली से आई एक कंपनी ने बीटेक के कई विद्यार्थियों से नौकरी दिलवाने के लिए 40000 Rs लिए. बाद में उन बच्चों की न तो नौकरी लगी न ही विश्वविद्यालय ने उन बच्चों के पैसों को वापस दिलवाने के लिए कुछ किया।

ऐसे में ये विश्वविद्यालय अपने एडमिशन के दौरान छात्रों को लुभाने के लिए क्या क्या हथकंडे अपनाता है ये आप इस पोस्टर में देख सकते है. ये कोई पुराना प्रोमो नहीं है . पोस्टर के कोने में आपको NAAC A ++लिखा हुआ दिखेगा. ऑफिसियल एडमिशन कैटलॉग में बड़ी बड़ी कंपनी के आने का दावा ये विश्वविद्यालय कर रहा है. आप खुद सोचिये कि अगर इन कंपनी में किसी भी बच्चे का प्लेसमेंट होता तो यहाँ उन बच्चो की फोटो होती न कि उस कंपनी का लोगो।
पेरेंट्स का दबाव और खुद से ज्यादा अपेक्षा:
इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स पर पहले ही काफी दबाव होता है. वहीं, आपसी मेलजोल भी न बन पाना , अपने शिक्षण संस्थान द्वारा अपेक्षित मदद न मिल पाने के बाद स्टूडेंट्स पर अपनी प्रदर्शन को लेके पेरेंट्स का दबाव उन्हें गंभीर तनाव की ओर ले जाता है. कई बार स्टूडेंट्स खुद से अपनी क्षमताओं के मुकाबले ज्यादा अपेक्षा करने लगते हैं. कुछ स्टूडेंट्स ऐसे तनाव को झेल नहीं पाते और आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं. और शायद यही कारण इस विश्वविद्यालय में हुए घटना का भी है। यहाँ एक बड़ा सवाल है कि एडमिशन के वक्त जो बड़े बड़े वादे भारतीय शिक्षण संस्थान अपने बच्चो के आगे रखते है उसी को साबित करने में अगर विश्वविद्यालय ही असफल हो जाए तो क्या वो विश्वविद्यालय अपने छात्रों के भविष्य को उज्जवल बनाने में सफल होगा?
ऐसी घटना भविष्य में न हो इसके उपाए क्या है ?
आईआईटी बॉम्बे में शुरू किए गए प्रोग्राम्स के तहत अगर किसी स्टूडेंट की बैक आती है या उसके ग्रेड कम रहते हैं तो उसे तुरंत काउंसलिंग दी जाती है. यही नहीं, यहां एक मेंटल हेल्थ सेंटर भी खोला गया है. आईआईटी गुवाहाटी में सेंटर फॉर वेलबिइंग शुरू किया गया है. यहां कम ग्रेड और बैक वाले स्टूडेंट्स की जानकारी डीन के साथ ही वेल्फेयर बोर्ड को भेज दी जाती है. इसके बाद वे स्टूडेंट से सीधे बात कर उनकी मेंटल हेल्थ पर काम करते हैं. आईआईटी खड़गपुर में हर शाम एक घंटे के लिए लाइट्स बंद कर दी जाती हैं ताकि स्टूडेंट्स लैपटॉप और इंटरनेट से कुछ समय निजात पा सकेंऔर बाहर निकल कर और एक दूसरे के साथ समय बिता सके. ऐसे में इस विश्वविद्यालय को भी ऐसी कोई तरकीब सोच कर निकालनी होगी की ये विश्वविद्यालय कही एक घटना के बाद लगातार ऐसी घटनाओं से घिर न जाए।
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